कभी दुश्मन से सर कटवाता है, कभी घर में ही चीर दिया जाता है। कभी दुश्मन से सर कटवाता है, कभी घर में ही चीर दिया जाता है।
यहाँ अहं को विसर्जित करती हूँ, इसलिए मैं शून्य हूँ... यहाँ अहं को विसर्जित करती हूँ, इसलिए मैं शून्य हूँ...
क्या भारी कदमों से कोई मंजिल को छू भी पाएगा। क्या भारी कदमों से कोई मंजिल को छू भी पाएगा।
परिश्रम पर अपने यकीं करो और इंसानियत से कभी दूर न हो। परिश्रम पर अपने यकीं करो और इंसानियत से कभी दूर न हो।
पर कभी ना जो बदले वही है सच्चे यार की यारी। पर कभी ना जो बदले वही है सच्चे यार की यारी।
राहें मुश्किल दृढ़संकल्पी हमें बनाती, खूबसूरत मंजिल हमें दिखती हैं। राहें मुश्किल दृढ़संकल्पी हमें बनाती, खूबसूरत मंजिल हमें दिखती हैं।